Tuesday, 29 September 2015

"अहंकार" किसके लिए

"अहंकार" किसके लिए


बहुत सुन्दर शब्द जो एक मंदिर के दरवाज़े पर लिखे थे :

 "सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो ! 

प्रसाद लेना है तो, स्वाद मत देखो ! 

सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो ! 

बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो ! 

समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो !

 रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !! 

 "जीत" किसके लिए,  

'हार' किसके लिए,  

'ज़िंदगी भर' ये 'तकरार' किसके लिए.. 

 जो भी 'आया' है वो 'जायेगा' एक दिन यहाँ से

 फिर ये इंसान को इतना "अहंकार" किसके लिए..

बड़े बावरे हिन्दी के मुहावर

बड़े बावरे हिन्दी के मुहावरे
हिंदी के मुहावरे,बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है....
कहीं पर फल है तो कहीं आटा दालें है ,
कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,
फलों की ही बात ले लो....
आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,
कहीं दाल में काला है,
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती,
कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है ,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़,
आटे में नमक तो जाता है चल,
पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,
अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,
गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,
कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है ,
कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,
किसी के दांत दूध के हैं ,
तो कई दूध के धुले हैं,
कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है,
तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है,
किसी को छटी का दूध याद आ जाता है ,
दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है ,
और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है ,
शादी बूरे के लड्डू हैं , जिसने खाए वो भी पछताए,
और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है ,
और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,
कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,
किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है...
कभी कोई चाय पानी करवाता है,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है ,
तो सभी के मुंह में पानी आता है,
भाई साहब अब कुछ भी हो ,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है,
जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब अपनी अपनी बीन बजाते है,
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है ,
सभी बहरे है, बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें हैं ...
⭕⭕⭕⭕

मनोवैज्ञानिक स्ट्रेस मैनेजमेंट

एक मनोवैज्ञानिक स्ट्रेस मैनेजमेंट के बारे में, अपने दर्शकों से मुखातिब था..

उसने पानी से भरा एक ग्लास उठाया...

सभी ने समझा की अब "आधा खाली या आधा भरा है".. यही पूछा और समझाया जाएगा..

मगर मनोवैज्ञानिक ने पूछा.. कितना वजन होगा इस ग्लास में भरे पानी का..??

सभी ने.. 300 से 400 ग्राम तक अंदाज बताया..

मनोवैज्ञानिक ने कहा.. कुछ भी वजन मान लो..फर्क नहीं पड़ता..

फर्क इस बात का पड़ता है.. की मैं कितने देर तक इसे उठाए रखता हूँ

अगर मैं इस ग्लास को एक मिनट तक उठाए रखता हूँ.. तो क्या होगा?

शायद कुछ भी नहीं...

अगर मैं इस ग्लास को एक घंट तक उठाए रखता हूँ.. तो क्या होगा?

मेरे हाथ में दर्द होने लगे.. और शायद अकड़ भी जाए.

अब अगर मैं इस ग्लास को एक दिन तक उठाए रखता हूँ.. तो ??

मेरा हाथ... यकीनऩ, बेहद दर्दनाक हालत में होगा, हाथ पैरालाईज भी हो सकता है और मैं हाथ को हिलाने तक में असमर्थ हो जाऊंगा

लेकिन... इन तीनों परिस्थितियों में ग्लास के पानी का वजन न कम हुआ.. न ज्यादा.

चिंता और दुःख का भी जीवन में यही परिणाम है।

यदि आप अपने मन में इन्हें एक मिनट के लिए रखेंगे..

आप पर कोई दुष्परिणाम नहीं होगा..

यदि आप अपने मन में इन्हें एक घंटे के लिए रखेंगे..

आप दर्द और परेशानी महसूस करने लगेंगें..

लेकिन यदि आप अपने मन में इन्हें पूरा पूरा दिन बिठाए रखेंगे..

ये चिंता और दुःख..  हमारा जीना हराम कर देगा.. हमें पैरालाईज कर के कुछ भी सोचने - समझने में असमर्थ कर देगा..

और याद रहे..
इन तीनों परिस्थितियों में चिंता और दुःख.. जितना था,  उतना ही रहेगा..

इसलिए.. यदि हो सके तो.. अपने चिंता और दुःख से भरे "ग्लास" को...

एक मिनट के बाद..

नीचे रखना न भुलें..

सुखी रहे, स्वस्थरहे.          
power of  positive  Thinking------

सबेरे उठना

एक सज्जन की तबियत ख़राब होने पर उसने डॉक्टर को दिखाया,

डॉक्टर ने सज्जन से कहा आप 12 घन्टे के मेहमान हो सबेरा नहीं देख पाओगे।

सज्जन ने यह बात दुःखी होकर पत्नी को बताई,

और सोचा आखरी रात पत्नी के साथ प्रेम से बिताई जाऐ।

दोनों बहुत देर तक प्रेम भरी बाते करते रहे,

पत्नी को रात 3 बजे नींद आने लगी तो पति ने कहा तुम तो सो रही हो

पत्नी बोली की तुम्हे तो सबेरे उठना नहीं पर मुझे तो जल्दी उठना पड़ेगा ना...

ज़िन्दगी एक सफ़र है

एक ट्रक के पीछे एकबड़ी अच्छी बात लिखी देखी...."ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहोउतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो""सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कमरखिएऔरजिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कमरखिए !!तज़ुर्बा है मेरा.... मिट्टी की पकड़ मजबुत होतीहै,संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखेहैं...![जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा !!!जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहेबारिश में ,जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए !!..So keep smile always .....

जुकाम से राहत के घरेलू नुस्खे :-


जुकाम से राहत के घरेलू नुस्खे :-
1. १०-१५ तुलसी के पत्ते और ८-१० काली मिर्च की चाय बनाकर पीने से खासी, जुकाम और बुखार ठीक हो जाता है|
2. आंवले के छिलकों को सूखाकर चूर्ण बनाकर बराबर मात्रा में मिश्री मिला ले! उसमें से ६ ग्राम सुबह ताजे पानी से खाए, पुराने से पुराना जुकाम ठीक हो जायेगा।
3. मुलेठी, काली मिर्च १०-१० ग्राम भूनकर पीस लें और ३० ग्राम पुराने गुड में मिला लें और मटर जितनी गोलिया बनाकर ताजे पानी के साथ लें, जुकाम में आराम मिलेगा।
4. अदरक का रस और शहद १०-१० ग्राम बराबर मात्रा में मिलाकर खाएं।
5. रोज़ २-३ लौंग चबाएं।
6. पानी को उबाले और उसकी भाप लें इससे जुखाम में आराम होता हैं।
7. २-३ बूँद सरसों का तेल नाक में डालें तुरंत आराम होगा।

 

लोक देवता तेजाजी की कहानी


लोक देवता तेजाजी महाराज का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।