एक नई नवेली दुल्हन जब ससुराल में आई तो
उसकी सास बोली :
बींदणी कल माता के मन्दिर में चलना है।
बहू ने पूछा :
सासु माँ एक तो ' माँ ' जिसने मुझे जन्म दिया
और एक ' आप ' हो
और कोनसी माँ है ?
सास बडी खुश हुई कि मेरी बहू तो बहुत सीधी है ।
सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है सब औरतें
जायेंगी हम भी चलेंगे ।
सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है ।
आगे सास पीछे बहू ।
जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को
देखकर
कहा :
माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है ,
मैं बाल्टी लाती
हूँ और दूध निकालते है ।
सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो
" पागल " है और
बोली
बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे
सकती।
चलो आगे।
मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी
।
फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा
सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया ।
और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ?
चलो अंदर चलो मन्दिर में, और सास बोली -
बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी
करेंगी ।
बहू ने कहा -
माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती
है ? ,
जब पत्थर की गाय दूध नही दे
सकती ?
पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ?
पत्थर का शेर खा नही सकता ?
तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ?
अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है
" आप मुझे आशीर्वाद दीजिये " ।
तभी सास की आँखे खुली !
वो बहू पढ़ी लिखी थी,
तार्किक थी, जागरूक थी ,
तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को
जाग्रत कर दिया !
अगर ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो पहले
असहायों , जरुरतमंदों , गरीबो की सेवा करो
परिवार , समाज में लोगो की मदद करे ।
" मानव सेवा ही माधव सेवा है " ।
" कर्म ही पूजा है " - भागवत गीता
बाकी
मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे तो मानसिक शांति
के केंद्र हैं
ना कि ईश्वर प्राप्ति के स्थान |
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Wednesday, 16 September 2015
कर्म ही पूजा है
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