Saturday, 26 September 2015

ऐसा मंदिर जहाँ धरती के गर्भ से जलती है ज्वाला, बादशाह अकबर ने भी टेके थे घुटन

ऐसा मंदिर जहाँ धरती के गर्भ से जलती है ज्वाला, बादशाह अकबर ने भी टेके थे घुटने
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ज्वालामुखी देवी हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर स्थित है । ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है! यह मंदिर माता के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि धरती के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर धरती के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।
इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया
मंदिर के बारे में एक कथा अकबर और माता के भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। उन्हीं दिनों की यह घटना है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।
अकबर ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने उत्तर दिया मैं ज्वालामाता के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं। अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाता कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाता संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे मन से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनकी शक्ति ऐसी है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग हर वर्ष उनके दर्शन जाते हैं।
अकबर ने कहा अगर तुम्हारी भक्ति सच्ची तो देवी माता जरुर तुम्हारी लाज़ रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी भक्ति का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी भक्ति झूठी है। परीक्षा के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
बादशाह से अनुमति लेकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।
यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया | उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई | उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं।
तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन सोने का छतर चढ़ाया | लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया | आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं
Jai Mata Di

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