Tuesday, 29 September 2015

कमाल है ना...

कमाल है ना...
बुद्वि लोहा नही, फिर भी जंग लग जाती है.
आत्मसम्मान शरीर नहीं,फिर भी घायल हो जाता है।

कमाल है ना...
होठ कपड़ा नही, फिर भी सिल जाते हैँ.
किस्मत सखी नही, फिर भी रुठ जाती है।

कमाल है ना........
आँखे तालाब नहीँ, फिर भी भर आती हैँ.
दुश्मनी बीज नही, फिर भी बोयी जाती है।

और.......
इन्सान मौसम नही,फिर भी बदल जाता है!!

..... कमाल है ना... !!!

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