पूनरासर राजस्थान प्रान्त का एक ग्राम है। पूनरासर बालाजी पूनरासर की पहचान है। पूनरासर धाम,हनुमानजी महाराज की असीम कृपावश सुदीर्घ भु-भाग मे विख्यात है | यह एक जागृत हनुमद स्थान है- हनुमानजी महाराज अपने भक्तो को सभी प्रकार के कष्टो से मुक्ति दिलाकर उन्हे भय मुक्त करते है |हनुमानजी महाराज के दरबार मे वर्ष पर्यन्त श्रधालुगन अपनी अर्जी प्रस्तुत करते है | कहा गया है जैसा भाव वैसा प्रभाव | हनुमानजी महाराज के इस भव्य एवम विशाल मन्दिर का इतिहास काफी प्राचीन रहा है |
स्थान
यह पवित्र स्थान रेत के टिब्बो से घिरा हुआ हे। मुख्य मंदिर के अलावा,हनुमान जी की प्राचीन मूर्ति एक खेजड़ी के पुराने पेड़ के साथ हे। पूनरासर हनुमानजीका मंदिर बीकानेर शहर से ५० किलोमीटर पूनरासर गावं में हे एवं श्री डूंगरगढ़ से ४० किलोमीटर की दुरी पर हे।
इतिहास
संवत १७७४ में भयंकर अकाल पड़ा अकाल के समय लोग अनाज और मजदूरी की तलाश में निकल पड़े। पूनरासर के जयराम दास बोथरा भी अनाज लाने के लिए पंजाब की यात्रा में गए। ऊंटनी पर बोरे लाद कार जब वे पूनरासर को लोट रहे थे की अचानक ऊंटनी का पैर टूट गया। वह चलने लायक नहीं रही तो जयराम दास को जंगल में ही रहना पड़ा अपने साथियों को समझा बुझा कर उन्हें गाँव भेज दिया। ऊंटनी का पैर टूटने से जयराम दास चिंता मगन थे। चिंता करते करते ही उन्हें नींद आ गयी। नीद में उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उन्हें आवाज देकर जगा रहा हे। हडबडाकर वे जगे तो वंहा पर उन्हें आवाज देने वाला कंही दिखाई नहीं दिया। जब वे सो गए तो पुनः उन्हें जगाने की वैसे ही आवाज आने लगी। उन्हें आश्चर्य हुआ कोई उन्हें आवाज दे रहा हे - पर सामने कोई दिखाई नहीं देता। उन्होंने आपने इस्ट हनुमानजीको याद किया और हाथ जोड़ कर कहा आप कोन हे प्रकट होकर बताइए। तब हनुमानजी महाराज साधू रूप में प्रकट हुए और कहा भक्त तुम संकट में हो ये मुझे पता है, पर अब तुम्हारे संकट का समाधान हो जाएगा। यह कह कर उन्होंने खेजड़ी के पैर के नीचे पड़ी मूर्ति की और इशारा कर के कहा इस हनुमद मूर्ति को आपने साथ ले जाओ और आपने गाँव में स्थापित कर देना, कोई कष्ट नहीं रहेगा। तब जयराम दास जी ने ऊंटनी के पैर टूटने की लाचारी जताई। साधू वेश धारी बाबा ने कहा जयराम दास तुम निसंकोच होकर अपने घर लोटो तुम्हारी ऊंटनी ठीक हे - हाँ बोरे पे लादकर इस मूर्ति को अवश्य ले जाओ और इसकी पूजा अर्चना करो।
जब प्रभु की कृपा हो जाये तो कोई भी संकट आदमी के समक्ष टिक नहीं सकता। पत्थर की मूर्ति को लेकर जयराम दास पूनरासर आ गए। साथियों ने जयराम दस जी को गावं में देखा तो आश्चर्य में पड़ गए पर उन्हें क्या पता की बोथरा जी को पवन पुत्र हनुमानकी कृपा का प्रसाद प्राप्त हो गया हे। जयराम दास जी ने मूर्ति के स्थापना बाबा के कहे अनुसार नहीं की तथा वे नियमित सेवा पूजा में सिथिल्या बरतने लगे तब उनके साथ दुसरा चमत्कार घटित हुआ। वे घर में सोते किन्तु रात्रि में जब उन्हें चेत होता तो स्वयं को वर्तमान मंदिर के खुले मैदान में पाते। जब इस घटना की पुनरावर्ती कई बार हुई तो बाबा ने पूर्वे की भांति कहा की उनकी मूर्ति की विधिवत स्थापना कर पूजा अर्चना की जाये। ओसवाल समाज के बोथरा जयराम दास ने कहा प्रभु हम वानिक लोग हे मंदिर बना कर पूजा अर्चना कैसे करेंगे यह तो ब्रह्मण वर्ग का काम हे। तब बाबा ने कहा निश्चिंत होकर तुम और तुम्हारा परिवार मेरा पूजन अर्चन करो इससे तुम लोगों के इश भक्ति और सोजन्यशिलता बढ़ेगी। हाँ तुम्हे अपनी और से भंडारे की व्यवस्था करनी होगी।
तब से ही बोथरा परिवार के लोग एक छोटा मंदिर बनवा कर हनुमानजी की सेवा पूजा करतें आये हैं तथा यह एकमात्र मंदिर हैं जंहा यात्रियों को प्रसाद स्वरुप आटा शक्कर घी प्रदान की जाती हे तथा उसे पकाने के लिए इंधन एवं बर्तन प्रदान किये जातें हे। जयराम दास जी के उपरांत तो यंहा भक्तजनो को अनेक प्रकार के चमत्कार हुए हैं। इस मंदिर की स्थापना संवत १७७५ की ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा को हुई। स्थापना के बाद से यंहा दूर दूर से भक्त लोग आने लगे और बाबा के दरबार मैं भांति भांति की अभ्यर्थना करने लगे। तत्कालीन बीकानेर राजपरिवार तक मंदिर की स्थापना मैं रूचि लेने लगा तथा उन्होंने कुंवे की स्थापना मैं पुजारी परिवार का सहयोग किया।
उत्सव
प्रतिवर्ष भव्य स्थापना दिवस का आयोजन ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा को किया जाता हे। प्रतिवर्ष तीन वृहद मेलों का आयोजन १- चेत्र सुदी पूर्णिमा २- आसोज सुदी पूर्णिमा ३- भादवा सुदी छट के उपरान्त पड़ने वाला प्रथम मंगलवार अथवा शनिवार को होता हे।
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